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लघुकथाएँ - संचयन - हरि मृदुल
दंगा
दोपहर ने कहा, ‘मैं शाम तक रहूँगी।’
शाम ने कहा,‘मैं रात तक रहूँगी।’
रात ने कहा, ‘मैं पूरे दिन रहूँगी।’
इस तरह एक सुनहरे दिन को सुनियोजित तरीके से ठिकाने लगा दिया गया। रात के बाद दिन आना था, घनघोर काली रात आई।
 
 
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