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लघुकथाएँ - संचयन - हरि मृदुल
रज्जो की मेहंदी
दुल्हन बनी रज्जो सजी‐सँवरी बैठी है।
बारात आने में अभी कुछ देर है।
मैने कहा, ‘रज्जो, हाथ तो दिखा।’
रज्जो के हाथों में मेहंदी लगी है। ललछौंही एकदम गहरी मेहंदी। उसने बड़ी नज़ाकत से मेरे सामने हथेलियाँ रखीं।
मैंने भरपूर नजर इन हथेलियों को देखा और फिर कहा, ‘रज्जो, तुम्हारी मेहंदी कभी नहीं छूटेगी।’
रज्जो लिपिस्टिक लगे होठों के बावजूद जोरों से हँस दी।
इसी बीच मैंने रज्जो की दोनों हथेलियों की फोटो खींच ली। क्लिक क्लिक क्लिक। कई बार।
वह देर तक मोहक हँसी हँसती रही।
पता नहीं रज्जो मेरे कहने का मतलब समझी कि नहीं।
 
 
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