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लघुकथाएँ - संचयन - हरि मृदुल
इतनी बड़ी नौकरी
वह बहुत बड़ी नौकरी में है।
उसकी तनख्वाह लाखों रुपए है।
उसकी व्यस्तता इतनी ज्यादा है कि वह अपने माँ‐बाप से कई वर्षों से नहीं मिला है।
वह अपने बीवी‐बच्चों तक से महीनों में मिल पाता है।
अपने आप से मिल तो उसे एक अर्सा हो गया है।
 
 
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