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लघुकथाएँ - संचयन - सूर्यकांत नागर
मूल्यांकन
‘‘पापा ! सुबह–सुबह आप कहाँ जा रहे हैं?’’ पिंकी ने अपने अफसर पिता से पूछा।
‘‘दफ्तर में मेहरा बाबू हैं न? उन बेचारे के बड़े बेटे की डेथ हो गई है।’’
‘‘ओ.....! मैं समझा आप चीफ मिनिस्टर वाले मेहरा अंकल के यहाँ जा रहे हैं।’’
‘‘क्यों?’’
‘‘अखबार नहीं देखा आपने?....उनके भाई की लड़की की डेथ हो गई है। आठ बजे फ्यूनरल है।’’
‘‘तूने पहले क्यों नहीं बताया! आठ तो बज रहे हैं। चलता हूँ, देर हो जाएगी।’’
‘‘पर पापा.....!’’
 
 
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