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‘‘तेरे कू बोलने को नई सकता?’’
‘‘क्या बोलती मैं?’’
‘‘साली....भेजा है मगज में?’’
‘‘तेरे कू है न? तम काय कू नई बोलता सेठाणी से? आक्खा दिन पाव सेर मारकर घूमता....’’
‘हलकट्! भेजा मत घूमा। बोला क्या?’’
‘‘खोली खाली करने कू बोलती।’’
‘‘तू बोलने को नहीं सकती? आता मेना में अक्खा भाड़ा चुकता कर देंगे।’’
‘‘तो तो मैं बोली।’’
‘‘पिचू?’’
‘‘बोलती होती–मलप्पा कू भेजना। खोली लिया, डिपासन भी नहीं नहीं दिया, भाड़ा भी नई देतां नई चलेगा...’’
‘‘साला लोगन का पेट बड़ा! कइसा चलेगा? सब मैं समझता...’’
‘‘तेरे कू कुछ ज्यादा है। जा, चुप सो जा!....’’
‘‘सेठाणी दुपर कू आई होती।’’
‘‘क्या बोलती होती?’’
‘‘खोली खाली करने कू बोलती?’’
‘‘मैं जो बोला, वो बोली?’’
‘‘मैं बोली, मलप्पा का माँ मर गया, मुलुक को पैसा भेजा। आता मेना में चुकता करेगा....’’
‘‘पिचू?’’
‘‘बोली, वो पक्का खडुश है। छे मेना पेला हमारा पाँव पर गिरा–सेठाणी! मुलुक में हमारा माँ मर गया, मेरे कू पन्नास रुपया उधार होना। आता मेना को अक्खा भाड़ा देगा, उधार देगा। मैं दिया, अजुन तलक वो पइसा नई मिला।’’
‘पिचू?....’’
‘‘गाली बकने कू लगी....पक्का खडुश है साला....! छो मेना पेला मेरे कूँ बोला होता–आता मेना में अक्खा चुकता करेगा। मुलुक में माँ मर गया हैं। मैं बोलदी, वो पेलू माँ मरा था, वो? वो बोला, सेठाणी बाप ने सादी बनाया.....भंकस बाजी अपने को नई होना। कल सुबू तक पइसा नई मिला तो सामान खोली से बाहर....!’’
‘‘तू क्या बोली?’’
‘‘मैं तो डर गई। बरसात में किधर कू जाना.....मैं बोली–सेठाणी, वो झूठ नई बोलता....’’
‘‘पिचू?.....’’
‘‘पिचू बोली, दो सादी बनाया, तो तिसरा माँ किदर से आया?’’
‘‘.....क्या बोली तू?’’
‘‘मैं बोली.....दो का मरने का पिचू, तिसरा सादी बनाया!....’’
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