पौ फटते ही किसान अपने बड़े बेटे के साथ खेत की ओर गया। फसल पक कर तैयार हो गई थी। उसने अपने बेटै से कहा, ‘‘बस अब फसल पक गई है, कल गांव वालों की मदद से कटवा लेनी है।’’ और दोनों घर की ओर वापस चले गए।
खेत के बीच में ही सारस के दो बच्चों ने भी किसान की वार्तालाप सुनी और चिंतित हो गए। शाम को जब चुग्गा करके उनके माँ –बाप वापस आए तो उन्होंने कल ही खेत कट जाने की बात से अवगत करा दिया। सारस ने अपनी पत्नी और बच्चों को आश्वस्त किया–‘‘आराम से पड़े रहो, चिंता करने की कोई बात नहीं है’’....और बात आई गई हो गई।
चार–पाँच दिन बाद किसान फिर अपने बेटे के साथ खेत पर आया, पकी हुई फसल हिचकोले खा रही थी, उसने फिर अपने बेटे से कहा, ‘‘अब फसल पूरी तरह पक गई है, बस अब एक–दो दिन में ही गाँव वालों की मदद से कटवा ही लेनी है।’’
और अपने बेटे के साथ वह फिर उन्हीं पगडंडियों से वापस चला गया। सारस के बच्चों ने पूरी बात सुन ही रखी थी, स्वाभाविक रूप से वे चितिंत भी हुए और शाम को फिर उन्होंने माँ–बाप से, एक–दो दिन में खेत कट जाने की बात कही।
इस बार भी माँ और बच्चे चितिंत हो गए। सारस ने उसी गंभीरता से फिर आश्वस्त किया, ‘‘चिन्ता करने की कोई बात नहीं है, आराम से पड़े रहो, अभी खेत कटने से रहा।’’
....और बात फिर आई–गई हो गई।
लगभग चार–पाँच दिन बाद किसान फिर अपने बेटे के साथ खेत पर आया। अब पकी हुई फसल अपना रंग बदलने लगी थी। अब तक उसे कटकर खलिहान में दाँवरी के लिए डाल देना था।
उसने अपने बेटे से कहा, ‘अब कल हम दोनों खुद ही अपना खेत काटेंगे,’’ और बाप बेटे फिर घर की ओर रवाना।
शाम को बच्चों ने किसान के वार्तालाप से फिर अपने माँ–बाप को अवगत कराया कि आज किसान कह रहा था, ‘‘कल वह खुद ही अपना खेत काटेगा।’’
सारस ने कहा, ‘‘बस अब कल ही पौ फटने से पूर्व ही यह डेरा छोड़ देना है, कल निश्चय ही यह खेत कट जाएगा।’’
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