बड़े साहब की पत्नी का मूड आज अच्छा था। वह सूरज से घर के काम भी करवाती जा रही थी और इधर–उधर की बातें भी करती जा रही थी। बातों ही बातों में अचानक उसने पूछ लिया, ‘‘अच्छा सूरज ये बात....तू भी....स्वर्ग–नरक, ये सब मानता है क्या...?’’
अचानक हुआ विषय परिवर्तन एक पल के लिए सूरज को चौंका गया था, पर वह चुप रहने वाला कहाँ था, लगा दर्शन झाड़ने, ‘‘बिल्कुल मानता हूँ बीबी जी, स्वर्ग–नरक कोई दूसरे लोक नहीं हैं, बल्कि सब कुछ यही धरती पर ही हैं जी।’’
‘वो कैसे?’’ बीबी जी ने पूछा तो वह बोला, ‘‘अब आप अपने आप को ही ले लो बीबी जी, आपके पति यानी की हमारे साहब बहुत बड़े अफसर हैं। आपके पास बँगला और गाड़ी जैसी सब सुख सुविधाएँ मौजूद हैं। ये सब स्वर्ग ही तो है बीबी जी.....।’’
‘‘और नरक ?’’
‘‘नरक को देखना हो तो जी आप हम छोटे लोगों की तरफ देख लो...।’’
‘‘अरे नहीं सूरज, भला ये भी कोई बात हुई।’’ बीबी जी ने उसे बीच में ही टोका था, ‘‘सरकारी नौकरी करने वाला तो एक प्रकार से सरकार का जमाई ही होता है। हर महीने बँधी– बँधाई तनख्वाह मिल जाती है। रिटायरमेंट के बाद पेंशन मिलती है और अगर किसी कर्मचारी की मृत्यु हो जाती है तो सरकार उसके बच्चों को नौकरी तक भी दे देती है...।’’
‘‘बीबी जी! सरकार के जमाई तो आप अफसर लोग हैं। हम चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी तो मजदूर हैं जी। दफ्तर की धूल झाड़ने के साथ–साथ हमें तो अफसरों के घरों की भी साफ–सफाई करनी पड़ती है। कसम खाकर कहता हूँ बीबी जी, मैंने अपने घर में कभी झाड़ू–पोंछा, बर्तन या कपड़ों को हाथ तक नहीं लगाया, पर मुझे आप साब लोगों के घर में सब करना पड़ता है।...ये.... नरक नहीं तो क्या है बीबी जी?’’
सूरज के मुँह से नरक की अनोखी परिभाषा सुनकर बीबी जी बुरी तरह झेंप गई थी।
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