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लघुकथाएँ - संचयन - रामकुमार आत्रेय
दूसरा जल्लाद
‘‘आओ मेरे पास लेटो......मैं कब से तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ।’’ काम निपटाकर कपड़े से हाथ पोंछती औरत को देखकर मर्द ने बिस्तर पर उसके लेटने के लिए जगह बनाते हुए कहा।
मर्द के स्वर में मनुहार थी। आज वह बेहद तनाव में था। औरत के लिए तनाव हल्का करने की एक रामबाण दवा थी।
‘‘नहीं जी, आज मैं बच्चों के साथ दूसरी कोठरी में सोऊँगी।’’ औरत ने हाथ पोंछने वाला मैला कपड़ा बराबर की खूँटी पर टाँगते हुए उत्तर दिया।
‘‘क्यों? क्या तुम्हें मेरे पास लेटना अच्छा नहीं लगता?’’ मर्द अधलेटा होने की स्थिति में आ गया था, उसकी नज़रें औरत के चेहरे पर टिकी हुई थीं।
‘‘बच्चे कुछ डरे हुए है’’ -औरत के स्वर में कुछ झिझक थी।
‘‘डरे हुए हैं? किससे और क्यों?’’
‘‘आज जब आप घर में घुसे थे, बच्चे टीवी देख रहे थे। तब आपने उन्हें टोका था। टोका तो प्यार से ही था, पर फिर भी वे आपको देखकर ही डर गए थे। इसलिए दूसरी कोठरी में जाकर लेट गए थे। अब तो वे वहाँ सोए पड़े हैं। वे दोनों रात में फिर से डरकर उठ सकते हैं।’’ औरत ने मर्द के साथ न सो पाने के कारण की व्याख्या कर डाली।
‘‘मैं समझा नहीं। ऐसा मैंने क्या कह दिया? क्या कर दिया?’’ मर्द नहीं उसकी चिंता बोल रही थी।
‘‘बुरा मत मानना जी, एक बात कहूँ?’’
‘‘कहो, जो भी कहना चाहती हो।’’
‘‘सच कहूँ जी, डर तो आज मैं भी रही हूँ। पीते तो कभी–कभी आप पहले से ही हैं पर आज आप की मूँछें खून के प्यासे किसी खांडे जैसी लग रही है। चेहरा भी कुछ बदल–सा गया है, एकदम पत्थर जैसा। आँखें भी बड़ी–बड़ी और चौड़ी -सी लग रही हैं, किसी ख़ौफ से भरी हुई सी। आवाज़ में प्यार की नरमाई की जगह, गुस्से की उबाल जैसी कोई चीज़ भरी हुई है जी। बच्चे डरते–डरते मुझसे कह रहे थे, कि आज आपका चेहरा किसी जल्लाद जैसा लग रहा है। हालाँकि जल्लाद न तो कभी उन्होंने देखा है और न ही मैंने। फिर भी टीवी देख–देखकर वे सब कुछ समझने लगे हैं।’’ औरत के कदम दूसरी कोठरी में जाने के लिए घूम चुके थे पर उसकी निगाहें अब भी अपने पति के चेहरे पर टिकी हुई थी, भयभीत हिरणी -जैसी।
मर्द हड़बड़ाकर बिस्तर से नीचे कूदा और लगभग दौड़ता हुआ -सा शीशे के पास जा पहुँचा। वह शीशे में अपने चेहरे पर आए बदलाव को जाँचने की कोशिश कर रहा था। वास्तविकता यह थी कि आज दिन में उसने अपनी खाप की एक महत्त्वपूर्ण सभा की प्रधानता की थी। खाप की एक युवती ने एक अन्य जाति के युवक के साथ चुपचाप शादी कर ली थी। उस मर्द की प्रधानता में खाप की सभा ने उस युवक–युवती को कत्ल कर दिए जाने का फरमान जारी कर दिया था। वैसे मर्द ने यह बात अभी तक औरत को नहीं बतलाई थी।
औरत सहमी हुई–सी मर्द को शीशे के सामने खड़ा देख रही थी।
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