बस में हडकंप मचा हुआ था । यात्री एक दूसरे पर गिर रहे थे । एक दूसरे का हाथ थामे और बस की अगली सीटो की रेलिंग पर अपने हाथ मजबूती से टिकाये हुए । कोई ड्राइवर से चीख चीख कर कह रहा था कि क्यों हडकंप मचा रखा है बस में । आराम से नही चला सकते ? जहन्नुम मै जाने की इतनी क्या जल्दी है ।
सुमी का हाथ भी इसी हडकम्प में सामने वाले के हाथ मै चला गया था। उसने डर के मारे आँख मीच कर वह हाथ थाम लिया था ।
सुमी को लगा - एक बारगी स्वर्ग का दरवाजा खुल गया । और उस का राधे - सामने उसका हाथ पकड़कर बैठ गया है । उस सम्बल की मजबूती ने उसके मन- प्राण- शरीर को ढक लिया था । उस की साँस धौकनी हो गई थी । बस में वैसे ही हडकम्प था ।
यह कुछ करके रहेगा - कोई चिल्लाया था पर दूसरे लोग चिल्ला कर भी चिल्ला नही रहे थे । उन्हें डर था कि ज्यादा शोर से या ताड़ना से ड्राइवर गाड़ी -किसी खाई मै ही ना उतार दे । इसी लिए मुट्ठियाँ बाँधे एक दूसरे को थामे -उस तूफान को गले उतार रहे थे।
सुमी धीरे से फुसफुसाई -‘ राधे !’ जिसे किसी ने नही सुना ।
उस के अंदर लगा - पता नही इतने सालों का सोया उस का राजकुमार कैसे जाग गया । उसे तो लगा था , पुरुष स्पर्श के बिना उस का शरीर नही मन भी - सूख कर काठ हो गया है । पर पता नहीं किन तहों मै यह ताप बचा रहा जो आज धक्का लगते ही सडक पर तारकोल की तरह बिछ गया । उस ने अपने आप को सम्भाला ।
गाड़ी रुक गई थी और यात्री उठ -उठ कर दरवाजे के बाहर धकियाते -ठेलते उतर रहे थे । उसने भी और सामने वाले ने भी अपने अपने हाथ ढीले कर लिये थे ।
अब वे बस स्टैंड के बरामदे में से निकल रहे थे । बस की भीड़ छँट गई थी । उन दोनों के बीच केवल एक अटेची -केस का फासला था जो उन दोनों के बीच अपनी सत्ता -सहित घिसट रहा था । दोनों ने एक दूसरे का चेहरा भी ठीक से नही देखा था और सुमी अपने आपमें गुम अपने अतीत मै खोई थी ।
राधे के बाद ! किसी ने उस के जिस्म को न छुआ था । वह पत्थर हो गई थी ।
आस पास लोगो की अठखेलियाँ देखते उसे वितृष्णा होती थी । कभी कभी आज भी राधे की झलक बिजली -सी उस के आर-पार हो जाती थी ।
वे अब रिक्शा स्टैंड के पास खड़े थे ।
‘आपको कहाँ जाना है ?’ पहली बार उसने आवाज सुनी थी ।
‘सुखना लेन … ’
‘और मुझे जाना है … मखानी गंज ’
‘तो सुखना लेन -मखानी गंज के पहले आता है।’ सुमी न जाने कैसे बिना सोचे -समझे बोल पड़ी । जैसे वह एक ही रिक्शा पर बैठने वाले हों ।
‘हाँ आप मुझे मोड़ पर महेश्वरी की हट्टी पर उतार दें।’
दूसरा यात्री अभी तक अपने ही साथ चल रहा था - अपने में ही समाहित ।
उस ने शायद सुमी की आवाज भी नही सुनी ।
वह एक दूसरे रिक्शा वाले को आवाज देकर उसे मखानी गंज जाने की हिदायत दे रहा था ।
सुमी देखती रही ।
क्षण भर में आकाश के सारे बादल कहीं और अपना जमघट बनाने दौड़ पड़े ।
राधे के स्वर्ग का दरवाजा बंद हो गया ।
मखानी गंज का रिक्शा - मखानी गंज रवाना हो चुका था ।
सुमी सोच रही थी -कि यात्री का तो नाम भी नही पूछा ।
पर यात्री ने भी तो नहीं पूछा !
उसने अपना सामान -धीरे से खिसकाया और सुखना लेन की रिक्शा में बैठ गई ।
सदियों पुराणी तरलता -कहीं हड्डियों के नीचे -एकाएक सूख कर फिर से काठ हो गई ।
उसे लगा -वह राधे ही था -जो एक बार फिर हवा में हवा हो गया है
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