नव्या अपने कमरे से काम पर जाने के लिए निकल रही थी , तभी उस की नजर पड़ी अपने दूसरे कमरे में , जहाँ बिशना कार्बन पेपर को लेकर अपनी कमीज़ पर जोरों से रगड रहा था। कमीज़ काली पडती जा रही थी। पर वह उसे उल्टा -सीधा कर के कमीज़ के हर कोने को कार्बन से काला कर रहा था। वह खड़ी -खड़ी देख रही थी , पर समझ नही पा रही थी। यह क्या ! अरे यह कमीज़ तो उसने विष्णु को नई ला कर दी थी। सब कुछ पुराना देकर उसे महसूस हुआ था कि अगर हम ही इन्हें कुछ नया नही देंगे तो ये बेचारे नया कहाँ से पहनेगे कभी।
अरे ! वह तो उसे जगह - जगह से फाड़ भी रहा है और उस की लतरें इधर -उधर लटकने दे रहा है।
उस कि समझ में नही आ रहा था। उस ने सोचा उसे जाकर पकड़े और डांटे कि ये क्या कर रहा है वह ।
अंदर घुसने से पहले ही वह रुक गई और उस की समझ में आ गया कि वह अभी भी फुटपाथ पर है ;जहाँ से उस ने उसे तीन दिन पहले उठाया था और एक बेहतर जिंदगी देने की सोची थी।
पर उसकी इस हुलिए में रहने की आदत तो जाते -जाते ही जाएगी न !
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