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लघुकथाएँ - संचयन - अंकुश्री
कर्फ़्यू
‘‘रुक स्साला ! कर्फ़्यू में कंहवा घूम रहा है ?’’ सिपाही की कड़कदार आवाज सुन कर मंगरा सकपका गया। शहर में कर्फ़्यू लग जाने की उसे जानकारी नहीं थी।
रोज कमाने–खाने वाला मंगरा चार माह पूर्व बीमार पड़ा तो मुहल्ले के एक दुकानदार ने मदद की थी। उसके स्वस्थ होने तक दुकानदार के काफी उधार हो गये। रोज कमा–कमा कर दो माह से वह उधार भर रहा था, लेकिन उधार खत्म नहीं हो रहा था।
दुकानदार के रोज–रोज के तकाजा से मंगरा घबरा गया था। एक पठान से पंद्रह रुपये सैकड़ा मासिक सूद पर चार सौ रुपये कर्ज लेकर मंगरा को बहुत खुशी हुई थी। वह बस्ती पार कर अभी मेन रोड पर आया ही था कि सिपाही मिल गया था। सिपाही ने उसे एक लाठी लगा दी। मार खाकर मंगरा ने कहा, ‘‘कर्फ़्यू की मुझे कोई जानकारी नहीं थी। ’’
‘‘चल, स्साले ! जेहल में जाने पर जानकारी मिल जाएगी। ’’ सिपाही ने मंगरा को एक बार ऊपर से नीचे तक देखा और आगे बोला, ‘‘ईंहवा के जेहल में जगह त है नहीं, तोरा सेंट्रल जेहल जाये पड़ेगा। ’’
‘‘सिपाही जी, छोड़ दीजिये’’जेल का नाम सुन कर मंगरा घबरा गया।
‘‘ना ! चल, अब ऊंहवे रहना होगा। दू–तीन महीना बाद छूट जायेगा। ’’
मंगरा बहुत परेशान हुआ। जेल जाने से परिवार के सामने भूखमरी आ जायेगी, दुकानदार का उधार फिर बढ़ जायेगा। कहाँ से लौटा पायेगा वह उधार रुपये ?
‘‘का काम करते हो ? ’’ सिपाही ने पूछा।
‘‘मजदूर हूँ हाकिम। छोड़ दीजिए, परिवार का अकेला आदमी हूँ सरकार ! ’’
‘‘चल, ऊंहवे चलके बड़का हाकिम से कहना। एक–डेढ़ हजार खरचा करने पर ऊंहवा से छूट जायेगा। ’’
मंगरा की परेशानी बढ़ती जा रही थी। अपनी जेब से सौ का एक नोट धीरे से निकाल कर मुट्ठी बंद कर उसने सिपाही की ओर बढ़ा दिया।
नोट खोल कर देखने के बाद सिपाही बिदक कर कहा, ‘‘नोट दिखलाता है ? ’’ उसने धीरे से कहा, ‘‘एक हजार लगेगा।’’
‘‘सरकार ! गरीब आदमी हूँ । बीमारी का ।’’
मंगरा गिड़गिड़ाता रहा। मगर सिपाही ने उसकी एक नहीं सुनी। एक–एक कर मंगरा ने अपनी जेब से सौ के चारों नोट निकाल कर उसको थमा दिये। सिपाही को जब विश्वास हो गया कि मंगरा के पास देने लायक और कुछ नहीं है तो उसने कहा, ‘‘मुरुख है। कर्फ़्यू में नहीं नू घूमना चाहिये। ’’ सिपाही ने आगे कहा, ‘‘तुम्हारी मजबूरी देख कर कोई उपाय करना ही होगा। ’’
‘‘जी हाँ माई–बाप ! मुझे बचा लीजिए। ’’
‘‘ठीक है, ठीक है। ’’ सिपाही ने अनमना–सा कहा। उसने उँगली से इशारा करते हुए कहा, ‘‘ओह गली से होके भाग जो। ’’
मंगरा जिस गली से आया था, उसी में घुस गया।
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