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लघुकथाएँ - संचयन - रमेश गौतम
किस्सा तोता मैना का
तोता मैना से बोला,
‘‘सुन मैना!’’
ज्ंगल में आग लग गई है। चल, कहीं और उड़ चलें।’’
मैना ने आश्चर्य से आंखें फैलाई, पंख फड़फड़ाए, ‘‘फिर आग, अभी तो पिछली आग ठंडी भी नहीं हो पाई।’’
‘‘हाँ, ऐसा ही होता है जब जंगल के राजा का चुनाव आता है।’’
तोते ने गहरी सांस लेकर कहा।
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