लुंगी पहने वह हट्टा-कट्टा देहाती उसे ताबड़तोड़ पीटे जा रहा था– कभी घूंसा, कभी चपत, कभी लात या फिर गाली ही।
पिट रहे आदमी की ऐनक दूर जा गिरी थी, होठों से खून बह रहा था।
उसे रोकते क्यों नही?– मैं भीड़ को संबोधित हुआ।
लूंगी की जलती आंखों ने मुझे घूरा– कौन है स्साला, दखल देने वाला? कैप्सूल में हल्दी डालकर खिलाता रहा…
उसने तीन-चार और जड़ दिए।
कैमिस्ट लगातार पिट रहा था। कुछ दुकानदार बचाव करना चाहकर भी हिम्मत नहीं कर पा रहे थे।
–कानून हाथ में क्यों लेते हो, भाई? रपट क्यों नहीं लिखवाते?
–तुम्हारे मुँह पर कोई तमाचा मारे, माँ के पास शिकायत करने भागोगे?– चीरती निगाहों ने मुझे घूरा।
–तमाचा मारने वाले के पीछे जो हाथ है, असली दुश्मन…
–बस चुपकर बाबू। तेरे मकान पर कोई ईंट-पत्थर फैंकता है तो जासूसी करवाएगा, कौन फैंकवाता है?
भीड़ में हँसी की फीकी-सी लहर दौड़ गयी।
–अभी इस आदमी के साथी तुम्हें घेर लें तो क्या करोगे?
–निकले, कोई माई का लाल सामने आता है?– खड़े होने की कोशिश करते कैमिस्ट को धक्का देकर उसने फिर से ज़मीन पर पटक दिया– तेरा रिश्तेदार है क्या?–वह ऐन मेरे सामने आकर खड़ा हो गया– तेरा जवान लड़का मर गया होता, तब बोलता…
–तुम्हारी तकलीफ समझ रहा हूँ, भाई। अगर इसे कुछ हो गया; और तुम अंदर हो गये तो…
उसका गुस्सा खाया हाथ अचानक ढह गया। आँखों में बेचारगी उतर आयी– कानून क्या कर लेगा? मेरा बेटा तो आने से रहा…
मैंने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा– कुछ काम अकेले नहीं, मिलकर किए जाते हैं, भाई। खामोश खड़ी भीड़ से कहो, तमाशबीन न बने…
भीड़ में हरकत आयी। देखते-देखते कैमिस्ट की सजी-धजी दुकान धरती पर औंधे मुँह पड़ी थी।
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