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लघुकथाएँ - संचयन - डॉ. सुरेंद्र मंथन
चाल
मुझे सही रास्ते का पता नहीं था। जिधर अधिक लोग जा रहे थे, मैँ भी उधर ही चलता गया। मेरा अनुमान सही निकला। वे भी योगीराज के आश्रम को जा रहे थे।
तीन घण्टे की प्रतीक्षा के बाद मेरी बारी आयी। योगीराज लंबी-चौड़ी पूछताछी करते थे। कभी लय में आकर हारमोनियम पर गाने लगते। उन्होंने विशेष कुछ नहीं बताया; परन्तु मुझे लगा, मेरा आना व्यर्थ नहीं गया। जब इतने लोग आते हैं, तो उनमें कुछ चमत्कार तो होगा ही।
वहाँ से निपट कर लौटा तो भूख चमक उठी थी। सड़क किनारे चाट की रेहड़ियाँ खड़ी दिखथ गयीं। जिस रेहड़ी पर अधिक भीड़ थी, मेरे पैर उधर ही बढ़ गये।
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