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लघुकथाएँ - संचयन - डॉ. सुरेंद्र मंथन
राजनीति
एक गंदा नाला था। दोनों किनारों को जोड़ता पुल इतना संकरा था कि एक वक्त में एक जना ही गुज़र सके। तभी दो बकरियाँ दो किनारों पर नमूदार हुई और रास्ते में टकरा गयीं। एक बोली, “पहले मैं जाऊँगी, तू पीछे हट।”
दूसरी ने कहा, “तू नहीं हट सकती?”
दोनों अड़ियल, झुकने को तैयार नहीं। पहली ने सुझाव दिया, “तू बैठ जा, मैं तेरी पीठ पर बैठ कर निकल जाऊँगी। फिर तू भी चली जाना।”
दूसरी तपाक से बोली, “क्यों तू नहीं बैठ सकती?”
बहस देर तक चलती रही। अचानक पहली की आँखों में चमक उभरी। वह बैठ गयी। दूसरी ने उसकी पीठ पर पैर रखा ही था कि वह अचानक खड़ी हो गयी। संतुलन बिगड़ते ही ऊपर वाली धड़ाम से नीचे नाले में जा गिरी। पहली मुस्करायी और छाती तान कर पुल पार करने लगी।
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