गतिविधियाँ
 
 
   
     
 
  सम्पर्क  
सुकेश साहनी
sahnisukesh@gmail.com
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
rdkamboj@gmail.com
 
 
 
लघुकथाएँ - संचयन - प्रद्युम्न भल्ला
नये पेड़
आज विद्यालय में प्रधानाचार्य सेवा–निवृत्त हो रहे थे। चारों तरफ चहल–पहल सी थी। उनके सम्मान में विदाई–पार्टी दी जा रही थी। सारा प्रबंध युवा अध्यापक ब्रजेश व नालिनी ने किया था। इन दोनों अध्यापकों में काम के प्रति समर्पित भाव तो था ही साथ ही हर कार्य को एक अनूठे ढंग से पूर्ण करने की कला भी थी,जिससे वे कभी–कभी अपने ही लोगों में ईर्ष्या का कारण भी बनते थे।
–चलिए सर सभी आप का इंतजार कर रहे है। ब्रजेश ने प्रधानाचार्य से कहा।
– हाँ सर, आप यहाँ इस पेड़ के नीचे क्या कर रहे हैं, जबकि पार्टी तो हाल ही में हैं। नलिनी ने कहा।
– हाँ ,हाँ चलिए प्रधानाचार्य बोले फिर मुड़कर चलते–चलते अचानक रुक गए।
–ब्रजेश जी आप इस पेड़ को देख रहे हैं?
–जी सर,
–यह पेड़ सैंकड़ों साल पुराना है । लगाने वाला तो नहीं रहा मगर इस की छाया तले सैंकड़ों, हजारों बच्चे शिक्षा प्राप्त कर जगत में प्रकाश फैला रहे हैं। चालीस वर्ष से तो मैं भी इस पेड़ से जुड़ा हूँ,कहते हुए प्रधानाचार्य का स्वर भर्रा गया।
–यह तो होता ही है सर, लोग आते हैं, चले जाते हैं, सस्थाएँ तो वहीं रहती हैं नलिनी बोली।
–आप भी कोई नया पेड़ क्यों नहीं लगाते सर- अचानक ब्रजेश बोला।
–प्रधानाचार्य ने उन दोनों को गौर से देखा ओर फिर पेड़ को देखा और बोले।
–आप लोग हमारे नये पेड़ ही तो है । आप की छाया में ये छोटे–छोटे पौधे पल्लवित -पुष्पित होकर एक दिन बड़े–बड़े वृक्ष बनेंगे और अपनी खुशबू से सब को सराबोर करेगें।
क्यों, है ना?
जी, कह कर ब्रजेश और नलिनी के चेहरे खिल गए।
-0-
 
 
Developed & Designed :- HANS INDIA
Best view in Internet explorer V.5 and above