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लघुकथाएँ - संचयन - फ़ज़ल इमाम मलिक
फ़रियाद
माई को जब पता चला कि नई आई लड़की माँ बनने वाली है तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा.....माई ने उसकी बलइयाँ लीं और दूसरी लड़कियों से साफ कह दिया उसका पूरा ख्याल रखा जाए...उस नई लड़की का अब पूरा-पूरा ध्यान रखा जाता...उसके खाने-पीने से लेकर दूसरी छोटी-छोटी बातों का भी....आख़िर लंबे अरसे के बाद वहां कोई लड़की माँ बनने जा रही है......।
कुछ दिन बीते तो माई उस नई लड़की को डाक्टर के पास ले गईं......डाक्टर ने लड़की की जाँच कर माई को तसल्ली दी...‘सब कुछ ठीक है’।
माई के चेहरे पर सुख फैल गया....लेकिन अचानक माई को कोख में पलने वाले बच्चे की जानकारी हासिल करने का मन हुआ....उन्होंने डाक्टर से कहा ‘इस बच्चे की जानकारी दें, प्लीज....बेटा है या बेटी’।
डाक्टर ने उन्हें टालना चाहा; लेकिन माई अड़ गई। तब डाक्टर ने लड़की के कोख में पलने वाले बच्चे की जानकारी के लिए परीक्षण किया। जाँच के बाद डाक्टर ने माई से कहा ‘मुबारक हो, लड़का है’।
डाक्टर की बात सुन कर माई सन्न रह गई...‘क्या कहा लड़का ?’
‘हाँ’ डाक्टर ने कहा।
‘डाक्टर हमें यह लड़का नहीं चाहिए’ उसने हाथ जोड़ दिए।
‘लेकिन क्यों’ डाक्टर हैरान थी.....‘यहाँ तो लोग लड़कियों को पैदा होने से पहले ही कोख में मार देते हैं और तुम लड़के को मारने को कह रही है’।
‘हाँ, डाक्टर...हमें लड़का नहीं लड़की चाहिए...’ माई ने कहा।
‘ऐसे क्यों’
‘डाक्टर, आप नहीं समझेंगी बेटियाँ हमारे लिए कितनी ज़रूरी होती हैं....बेटे हमारे लिए बोझ होते हैं डाक्टर...मेरी बच्ची उस बच्चे को नहीं जनेगी डाक्टर....हम वेश्या जो ठहरे....’।
माई की आँखों में प्रार्थना थी और डाक्टर की आँखों में हैरत।
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