मौलाना साहब कभी भी उस गली से होकर नहीं गुज़रते। आख़िर शहर की सबसे बदनाम गली थी और उनके जैसा परहेज़गार आदमी उस गली की तरफ़ मुँह करना भी पसंद नहीं करेगा। वे लंबा रास्ता तय कर घर से मस्जिद आते-जाते। हालांकि इस रास्ते का इस्तेमाल कर के वे समय भी बचा सकते थे; लेकिन उन्होंने इस छोटे रास्ते से होकर घर जाने की बजाय बड़े रास्ते को ही तरजीह दी। कितनी ही जल्दी क्यों न हो उन्होंनेउस छोटे रास्ते का इस्तेमाल कभी नहीं किया। बरसों से यह उनका मामूल था.....
एक रात अशां की नमाज़ पढ़ा कर घर लौट रहे थे। उन दिनों शहर का माहौल ठीक नहीं था। बात-बात पर लोग एक दूसरे का गला काटने पर आमादा हो जाते थे। रात ज्यादा हो गई थी। पर वे मामूल के मुताबिक़ धीरे-धीरे कदम धरते हुए घर की तरफ़ लौट रहे थे। छोटे से रास्ते को छोड़ कर ज्यों ही वे बड़े रास्ते की तरफ़ मुड़े- गली से बदहवास- सी दौड़ती एक लड़की को आते देख कर उनके क़दम ठिठक गए.......लड़की ने भी उन्हें देख लिया था। वह तीर की तरह उनकी तरफ़ आई.....मुझे बचा लें....
वे कुछ बोल भी नहीं पाए थे कि गली से चार-पाँच लड़के निकले। वे उस लड़की के पीछे आए थे। उन्हें देख कर ही लग रहा था कि उनके तेवर ठीक नहीं हैं......पर मौलाना साहब को देख कर लड़के भी दूर ही रुक गए.......मौलाना ने उन लड़कों को पहचान लिया.....वे उनके मोहल्ले के ही लड़के थे.....।
मौलाना को माजरा समझते देर नहीं लगी......मौलाना के साथ खड़ी लड़की को देख कर लड़के पसोपेश में थे.....एक ने हिम्मत कर कहा ‘इसे हमारे हवाले कर दें।’
‘क्यों.....’ मौलाना ने पूछा।
‘इसे हलाल कर डालना है’। उसने फिर कहा।
‘लेकिन इसका क़सूर क्या है ?’ मौलाना ने पूछा।
‘इसका क़सूर बस इतना है कि यह हिंदू है’ इस बार दूसरे लड़के ने कहा।
‘तो क्या हुआ’ मौलाना ने बहुत शांत स्वर में कहा।
‘और मज़हब में काफ़िरों को मारने की इजाज़त है’ तीसरे ने बात को आगे बढ़ाई।
‘मज़हब को बीच में मत ला।’ अचानक मौलाना की आवाज़ तेज़ हो गई.....उन्हें इस तरह गुस्सा करते हुए वे लड़के पहली बार देख रहे थे।
‘किस मज़हब की बात करते हो.....मज़हब ने इजाज़त दी है....’मौलाना ग़ुस्से से काँप रहे थे। ‘मज़हब ने कभीभी औरतों, बच्चों और बूढ़ों को मारने की इजाज़त नहीं दी है और बेक़सूरों को मारने की तो उसने कभी भी इजाज़त नहीं दी है। यह लड़की मेरी पनाह में है और इसकी तरफ़ हाथ क्या नज़र भी उठाने की कोशिश की तो मैं तुम लोगों की आँखें निकाल लूँगा।’ फिर वे लड़की से मुख़ातिब हुए ‘चलो बेटी, तुम्हें तुम्हारे घर तक छोड़ दें’। उसे साथ लेकर वे उस छोटे रास्ते से उस गली में दाख़िल हो गए जहाँ अब तक उन्होंने पाँव नहीं धरा था।
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