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लघुकथाएँ - संचयन - फ़ज़ल इमाम मलिक
सियासत
वह सियासत के खेल में माहिर था...ठीक चुनाव से पहले उसने अपने इलाके में एक मंदिर बनाया और उसका उद्घाटन इलाके के एक हरिजन से करा दिया...इलाके के लोगों ने उसकी उदारता के गुण गाए.....पिछड़ों और हरिजनों के बीच वह नए अवतार के रूप में स्थापित हुआ.....चुनाव हुआ और वह भारी बहुमत से जीता और सत्ता के की शीर्ष पर जा पहुँचा....इस बात को बरसों बीत गए हैं.....वह सत्ता के शीर्ष परे बना हुआ हैं ;लेकिन मंदिर का उद्घाटन करने वाला वह गरी़ब हरिजन अब मंदिर के बाहर बैठा भीख माँगा करता है....
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