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लघुकथाएँ - संचयन - प्रेम जनमेजय
प्रमाणपत्र
पहला -=नमस्कार, भाई साहब! मुझे अपने बच्चे के जन्म का प्रमाणपत्र चाहिए।
दूसरा -ठीक है, इस फार्म को भरकर एक रुपया जमा करा देना, पंद्रह दिन बाद मिल जाएगा।
पहला- पंद्रह दिन में! मुझे तो जल्दी चाहिए, एडमिशन फार्म के साथ देना है।
दूसरा- आप लोग ठीक समय पर जागते नहीं हैं और हमें तंग करते हैं, ठीक है। बड़े बाबू से बात करनी होगी, दस रुपए लगेंगे। एक हफ्ते में सर्टिफिकेट मिल जाएगा।
पहला- भाई साहब मुझे दो दिन में चाहिए, आप कुछ कीजिए न प्लीज!
दूसरा- ठीक है, बीस दे दीजिए। लंच के बाद ले जाइएगा।
पहला- मैं विजिलेंस से हूँ, तो तुम रिश्वत लेते हो!
दूसरा- हुजूर भाई–बाप हैं....यह आज की कमाई आपकी सेवा में हाजिर है।
पहला- गलत काम करते हो और हमें तंग करते हो। तुम्हें सस्पेंड भी किया जा सकता है।
दूसरा- हुजूर,एक हजार दे दूँगा।
पहला- तुम मुझे धर्म–संकट में डाल रहे हो, मुझे तुम्हारे बाल–बच्चों का ध्यान आ रहा है परंतु ड्यूटी इज ड्यूटी।
दूसरा- हुजूर दो हजार से ज्यादा की औकात नहीं है।
पहला- ठीक है, ठीक से काम किया करो। आदमी को पहचानना सीखो। मुझसे मिलते रहा करो। तुम जैसे कुशल कर्मचारियों की देश को बहुत आवश्यकता हैं।
यह कहकर उसने हाथ मिलाया, संधि पर हस्ताक्षर किए और देश तीव्रता से प्रगति करने लगा।
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