खबर फैली है कि इस इलाके में अकाल देखने प्रधानमंत्री आ रही है।
सरगर्मी बढ़ती है।
जंगल के बीच से नमूने के तौर पर पचास कंगाल जुटाए जाते हैं और पंद्रह दिन तक कैंप में रखकर उन्हें इस मौके के लिए तैयार किया जाता है।
स्वागत की तैयारियाँ शुरू होती हैं। फाटक बनाए जाते हैं। तोरण और बंदनवार सजाए जाते हैं। ‘स्वागतम्’ और ‘शुभागमन’ लटकाए जाते हैं। ‘जयहिंद’ के लिए दो नेताओं में मतभेद हो जाता है, इसलिए यह नहीं लटकाया जाता।
गाड़ियाँ इधर से उधर दौड़ती हैं और उधर से इधर। पुलिस आती है, पत्रकार आते हैं, नेता और अफसर आते हैं। सी.आई.डी. की सतर्कता बढ़ती है।
अपने क्षेत्रों के विजेता नेता लोगों को समझाते हैं कि यह उनकी आवाज है, जो प्रधानमंत्री को यहाँ घसीट लाई है। इस तरह अगले चुनाव में उनकी विजय की भूमिका बनती है।
दूसरे क्षेत्रों से आए नेताओं को कोफ्त होती है कि उनका क्षेत्र अकाल से क्यों वंचित रह गया।
इस बीच अकाल भी जोर पकड़ लेता है। पेड़ों से बेल, महुए, करौंदे, कुनरू, बौर साफ हो जाते हैं। अब पेड़ नंगे होने लगे हैं, उनकी पत्तियाँ–भरसक नरम और मुलायम–उठा ली जा रही हैं और खाई जा रही हैं।
यह सब तब तक चल रहा है, जब तक आग है।
ऐन वक्त पर प्रधानमंत्री आती हैं। वे दस रुपए की साड़ी में सौ वर्ग मील की यात्रा करती हैं। कुछ ही घंटों में इतनी लंबी यात्रा लोगों को सकते में डाल देती है।
प्रधानमंत्री खुश रहती हैं, क्योंकि लोग भूखे हैं, फिर भी उन्हें देखने के लिए सड़कों पर धूप में खड़े हैं। जनता प्रधानमंत्री के प्रति अपने पूरे विश्वास और विनय के साथ अकाल में मर रही है। अंत में, प्रधानमंत्री का दस मिनट तक कार्यक्रम हाता है। रामलीला मैदान में कहीं कोई तैयारी नहीं है, क्योंकि बाहर से लाए जाने वाले फल, गजरे, केले के गाछ कंगालों के बीच सुरक्षित नहीं रह सकते ओर ऐसे भी यह कार्यक्रम जश्न मनाने के लिए नहीं है।
कार्यक्रम से पहले प्रदर्शनी के लिए तैयार किए सैंतालीस कंगाल लाए जाते हैं। (पचास में से तीन मर चुके हैं। कैंप में आने के तेरहवें दिन जब उन्हें खाने के लिए रोटियाँ दी गई, तो वे पूरी की पूरी निगल गए। और हुआ यह कि रोटी सूखे गले में फंस गई और वे दिवंगत हो गए।
प्रधानमंत्री उनके और सारी भीड़ के आगे अपना कार्यक्रम पेश करती हैं। वे धूप में एक चबूतरे पर आ खड़ी होती हैं। बोलने की कोशिश में होठों को कँपाती हैं। आँखों को रूमाल से पोंछती हैं और सिर दूसरी और घुमा लेती हैं। रूमाल के एक कोने पर सुर्ख गुलाब कढ़ा है।
भीड़ गदगद होती है।
इस मौन कार्यक्रम के बाद प्रसन्न चेहरे के साथ प्रधानमंत्री विदा लेती हैं। नारे लगते हैं। जय–जयकार होता है। और दूसरे शहर के सबसे बड़े होटल मं प्रधानमंत्री पत्रकारों के बीच वक्तव्य देती हैं ‘‘हम दृढ़ता, निश्चय और अपने बलबूते पर ही इसका मुकाबला कर सकते हैं।’’
अफसर खुश होते हैं कि दौरा बिना किसी दुर्घटना के संपन्न हुआ है। भीड़ पहली बार अपने जीवन में प्रधानमंत्री का दर्शन पाकर छँट जाती है। और वे सैंतालीस कंगाल घास और मोथों की आंड़ी खाने के लिए जंगल की ओर हाँक दिए जाते हैं।
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