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लघुकथाएँ - संचयन - कृष्णशंकर भटनागर
जिस्म पर उगा कफन
देखते–ही–देखते उनकी मृत्यु हो गई...। पुत्र की गोद में ही उन्होंने दम तोड़ दिया। पास ही उनकी पत्नी उनके मृत शरीर को हतप्रभ हो देख रही है....रिश्ते की एक बहन उनके सिरहाने बैठी है, बुदबुदाती हैकृभाई मर गया...।
पत्नी सचेत हो जाती है, चिल्लाई....‘‘अजी रोना–धोना मत करना....मोहल्ले–पड़ोस वाले क्या कहेंगे....? किो मैले कपड़े हैं इनके....।’’
वह उठी। अंदर संदूक से कुछ रुपए लाकर पुत्र के हाथ में थमाकर आदेश दिया...., ‘‘जा, दौड़कर एक सिली–सिलाई कमीज और एक पाजामा ले आ....। खबरदार अभी किसी को मरने की खबर मत देना....।’’
कमीज–पाजामा लाया गया। उसे पहनते ही वे मृत घोषित कर दिए गए.....
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