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लघुकथाएँ - संचयन - कृष्णशंकर भटनागर
मोहभंग
‘‘मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता, समझीं तुम! कितने दिन हो गए यहाँ आए.....।’’
‘‘पर डॉक्टर को तो दिखा लें, जब आए ही हैं....’’
‘‘दिखा लो, पर साथ ही चलना पड़ेगा, तुम्हारी जुदाइ्र सालने लगती है–मुझे....।’’
अगले दिन।
‘‘क्या बताया...डॉक्टर ने....? पति ने पूछा’’!
‘‘यूट्रस और ओवरी में सोजिश है और तीन माह तक....पूरी छुट्टी...समझे।’’
‘‘ओह....!’’ वह गंभीर मुद्रा बनाकर बोला, ‘‘ठीक है, तुम तीन महीने यहीं पर रह लो...मैं किसी तरह काट ही लूँगा...।’’
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