आस्तिक के आ को ना में बदलने में उसे काफी वक़्त लगा था, ऐसा होने के लिए सिर्फ विज्ञान का विद्यार्थी होना ही सबकुछ नहीं होता। कई बार उसने खुद बड़े-बड़े वैज्ञानिकों को अपने अनुसंधान पत्रों को जर्नल्स में प्रकाशित होने के लिए भेजते समय, कभी गणेश, कभी जीसस तो कभी वैष्णोदेवी की तस्वीरों के आगे आँखें मूँदते देखा था। कुछ उसका मनन था, कुछ चिंतन, कुछ किताबें, कुछ संगत और कुछ दुनिया से उस अलौकिक शक्ति की ढीली पड़ती पकड़, जिन्होंने मिलजुलकर उसे दुनिया में तेज़ी से बढ़ रही इंसानी उपप्रजाति 'नास्तिक' बना दिया था।
कल शाम जब वह जिम पहुंचा तो अत्याधुनिक व्यायाम मशीनों के बीच उसने खुद को अकेले पाया, कारण था कि आज वह थोड़ा जल्दी आ गया था। इससे पहले कि वह अपनी सारी एक्सरसाइज निपटाता उसने हॉल में किसी और को आते देखा। आने वाली एक स्थानीय गोरी लड़की थी। वह पहले से थोड़ा अधिक सतर्क दिखने लगा और चारों ओर की दीवारों में जड़े आइनों में से एक के सामने अपनी व्यायाम कुर्सी जमाकर बैठ गया, साथ ही बाहों के डोले मजबूत करने के लिए भारी डम्बलों को गिनती सिखाने लगा।
अचानक नज़र सामने गई तो जाना कि लड़की दो हल्के डम्बलों को हाथ में ले आगे की ओर झुककर व्यायाम कर रही थी। उसने लड़की के झुकने में अपना आनंद ढूंढ लिया और फिर जब भी वह आगे की तरफ झुकती वह सामने लगे आईने के सहारे चोर नज़रों से अपनी इन्द्रियों को तृप्त करने में लगा होता।
अचानक उसने महसूस किया कि कोई उसे देख रहा है। वह सकपका गया, पल भर को उसने डर महसूस किया। लड़की का ध्यान अभी भी उसकी तरफ न था, कमरे में भी कोई नहीं था, तभी उसे ध्यान आया कि वह आईने के सामने बैठा है। वह विद्रूप हँसी हँसने को हुआ, लेकिन एकाएक वह अपना पहचान पत्र और पानी की बोतल समेटता हुआ वहाँ से बाहर निकल गया।
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