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लघुकथाएँ - संचयन - शैलेन्द्र सागर
नियति
थोड़ी दूर पर लगा छोटा पत्थर मील के पत्थर से बोला, ‘‘बाबा, प्रतिदिन हमारे सामने से न जाने कितनी गाड़ियाँ,बैल गाड़ियाँ,, रिक्शे, ताँगे, आदमी–औरत और बच्चे गुजरते हैं। मुझे देखकर तो थोड़ा मु़ँह बिदकाते हैं, किंतु आपको बड़े ध्यान से देखकर धीरे से मुस्कराते हैं और आगे बढ़ते चले जाते हैं। हम लोग यहीं क्यों थमे हैं, आगे क्यों नहीं बढ़ते?’’
मील का पत्थर मुस्कराया और बोला, ‘‘कुछ लोग केवल दूसरों को रास्ता दिखाने के लिए जन्म लेते हैं। वे आगे का उनका मार्ग प्रशस्त अवश्य करते हैं, स्वयं आगे नहीं जाते। हमारी भी यही नियति है....’’
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