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लघुकथाएँ - संचयन - शैलेन्द्र सागर
इधर–उधर
इधर पुलिस कप्तान ने अपने अधीनस्थ पुलिस डिप्टियों से बारह बजे ड्यूटी पर खड़े होने के आदेश निर्गत किए, क्योंकि वी.आई.पी. महोदय दो बजे आने वाले थे। डिप्टी साहब ने थानाध्यक्षों को ग्यारह बजे ड्यूटी लगाने का हुकुम पारित किया और थाना प्रभारी ने अपने नीचे के कर्मचारियों को दस बजे बावर्दी दुरुस्त,चुस्त,मुस्तैद ड्यूटी पर रिपोर्ट करने की ताकीद की।
उधर वी.आई.पी. महोदय को सरकारी कार्य, पब्लिक डीलिंग से रिे–रिे दो बजे फुर्सत मिली। पी.ए. ने जनसभा के बारे में याद दिलाया, किंतु पास बैठे ‘सलाहकार’ ने राय दी, ‘‘अरे महोदय, सुबह से थक गए होंगे। पहले भोजन करके आराम कर लें...।’’
‘‘किंतु मीटिंग का समय तो दो बजे का है....।’’
‘‘पब्लिक और प्रशासन के लिए न....आप तो तीन–साढ़े तीन बजे जाएँ।’’
वी.आई.पी. ने लगभग साढ़े तीन बजे फिर पुछवाया तो आयोजक का फोन पर उत्तर मिला, ‘‘महोदय, कुछ समय लोकल वक्ताओं को भी मिल जाए, वरना आपके बाद उन्हें बोलने का अवसर कहाँ मिलता है। फिर उन्हें सुनना भी कौन चाहता है, महोदय....।’’
वी.आई.पी. अंतत: चार बजे चलकर साढ़े चार बजे मीटिंग स्थल पर पहुँचे।
तब तक सारी चुस्त एवं दुरुस्त व्यवस्था सुस्त एवं पस्त हो चुकी थी।
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