ईश्वर ने अप्रसन्न होकर कहा, ‘‘तुम निरे मूर्ख हो। तुम्हें धरती पर अच्छे कार्य करने के लिए भेजा गया था। मगर वहाँ पहुँचकर तुम पूजा–पाठ जपतप और दान-पुण्य से कोसों दूर रहे और पूरा जीवन मौज मस्तियों में ही गँवा दिया।’’
‘‘तो?’’
‘‘तो क्या? तुम्हें एक अवसर और देते हुए पुन: धरती पर भेजा जा रहा है। इस बार सावधान रहना। मुझे सदा याद करते रहना और खूब मन लगाकर जप–तप आदि में समय व्यतीत करना।’’
मगर इस बार भी उसके कार्यकलाप में कोई अंतर न आया। वही रंगीनियाँ और वहीं मस्तियाँ।
बार–बार ऐसा ही होता रहा। मग रवह न बदला।
ईश्वर ने निराश होकर कहा, ‘‘तुम कैसे आदमी हो। बार–बार अवसर दिए जाने के बावजूद तुम नहीं सुधरे। सुधर जाते, तो इस जीवन–मरण के चक्कर में सदा के लिए मुक्त हो जाते।’’
‘‘फिर क्या हो जाता? उसने प्रश्न किया।’’
‘‘तुम्हें मोक्ष नहीं चाहिए?’’
‘‘क्षमा करें प्रभु आपने धरती नाम की जो चीज बनाई है न, वह बहुत ही मनमोहक है और मुझे
उससे प्यार हो गया है।’’
-0-