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लघुकथाएँ - संचयन - माहेश्वर
बिजनेस
दो मोटे–ताजे, चिकने और भव्य व्यक्तित्व वाले आदमी पास–पास बैठे हवाई अड्डे पर अपनी–अपनी उड़ानों की प्रतीक्षा कर रहे थे। वक्त काटने के लिए वे एक–दूसरे से बतियाने लगे, ‘‘आपका शुभनाम जान सकता हूँ।’’
‘‘जी ,मुझे रामदास पापड़वाला कहते हैं, और आपका शुभनाम?’’
‘‘मेरा नाम सूरजमल ढांढनिया है।’’
‘‘क्या करते हैं आप?’’
‘‘बिजनेस। और आप,’’
‘‘मैं भी।’’
‘‘क्या बिजनेस करते हैं आप?’’
‘‘मेरी तीन तेल–मिलें, दो दाल मिलें और दो होटल चलते हैं। और आपका?’’
‘‘मेरी चार अनाथालय, दो विधवा–आश्रम, दो धर्मशालाएँ और दो पब्लिक स्कूल चलते हैं।’’
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