गतिविधियाँ
 
 
   
     
 
  सम्पर्क  
सुकेश साहनी
sahnisukesh@gmail.com
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
rdkamboj@gmail.com
 
 
 
लघुकथाएँ - संचयन - माहेश्वर
ऊँट और पहाड़
उस ऊँट का र भी रेगिस्तान में था, जहाँ हर चीज की किल्लत थी–न पानी, न चारा, न और कोई ऐशो–आराम की चीज। उसने नखलिस्तानों के बारे में सुन रखा था। एक दिन गर्भवती ऊँटनी को रोती छोड़ वह नखलिस्तानों की तलाश में निकल गयां।उसने सारे नखलिस्तानों की सैर की। उनके सोतों का शहद -जैसा पानी पिया, अमृत जैसे मीठे फल खाए और हरी घास पर लेट लगाई, पर उसे हमेशा रेगिस्तान याद आता रहा। उसे हमेशा लगता था कि रेगिस्तान में ऐसा कुछ है, जो इन सभी सुखों से बढ़कर है। उसे एक दन एक पहाड़ दिखा जो चुनौती की तरह उसके सामने सिर उठाए खड़ा था। चढ़ाई बड़ी कठिन थी फिर भी ऊँट किसी तरह पहाड़ की चोटी पर जा चढ़ा। एक ऊँट के लिए यह सबसे बड़ी उपलब्धि थी। सफलता को उस ऊँचाई पर भी उसे रेगिस्तान याद आया, गर्भवती ऊँटनी याद आई।
रेगिस्तान में अपने घर लौटकर उसने देखा, ऊँटनी बूढ़ी हो गई है। उसे दिखाई भी कम देने लगा है। ऊँटनी ने उसे बताया कि उसके जाने के बाद उसने एक बेटे को जन्म दिया ,जो अब जवान पट्ठा हो गया है, पर वह भी नखलिस्तानों और पहाड़ों की बातें करने लगा है। पहले तुमने मुझे दु:ख दिया। अब तुम बुड़ापे में वापस आए तो बेटा घर छोड़़ने को उतावला हो रहा है। ऊँटनी ने रोते हुए कहा।
‘‘मैं उसे समझा दूँगा। अपने घर जैसा सुख कहीं भी नहीं है।’’ ऊँट ने कहा और ऊँटनी के आँसू पोंछ दिए।
एक दिन ऊँट ने बेटे को पास बुलाया और प्यार से उसके थूथन से थूथन सटाते हुए बलबलाया, ‘‘बेटे, ये जो नखलिस्तान दूर से बड़े सर–सब्ज और चमकीले दीखते हैं न, इनमें कोई खास बात नहीं है। पहाड़ों की ऊँचाई भी ऊँटों के लिए मुआफिक नहीं पड़ती। सारा जीवन चमक–दमक के लालच में भटक कर मैं इसी नतीजे पर पहुँचा हूँ कि अपना घर और अपना देश ही सबसे अच्छा होता है।’’
‘‘हुँह। बुड्डा खूसट। अपने आप तो मेरी माँ को तपते रेगिस्तान में छोड़कर सारी जिंदगी मौज–मस्ती करता रहा। अब मेरी मौज–मस्ती के दिन है तो मुझे नसीहत देने चला है।’’ बेटे ने मन ही मन कहा और नखलिस्तानों की तरफ भागने लगा।
-0-
 
 
Developed & Designed :- HANS INDIA
Best view in Internet explorer V.5 and above