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लघुकथाएँ - संचयन - सुदर्शन वशिष्ठ
बिटिया के जन्म पर

‘‘चलो कोई बात नहीं। तुम्हारे प्रारब्ध में जो है, वही मिलेगा’’–सभी ने दिलासा दी। नर्सें एकदम गुमसुम हो गईं। किसी ने बधाई नहीं दी। लड्डू भी नहीं बाँटे गए। डॉक्टरनी ने कहा, ‘‘पहला ईशू है? डोंट वरी।’’
पुरोहित को भी टाइम नहीं बताया गया। मित्रों ने पार्टी नहीं माँगी। यह जन्म का उत्सव नहीं था।

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