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लघुकथाएँ - संचयन - कुलदीप जैन
हादसे के बीच

स्टोव से महिला के जल जाने की खबर चिरांध की तरह पूरे मोहल्ले में फैल गई थी। दो बच्चों की माँ ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया था। उस समय उसका पति स्कूल में था। जब वह लौटा तो पुलिस पूछताछ कर रही थी। पुलिस की छेड़छाड़ से वह इतना आतंकित हो गया कि चिल्ला पड़ा, ‘‘तुम्हें जो कुछ करना है करो, पर मेरी औरत की मिट्टी दिला दो।’’
पड़ोस की औरतें उन बच्चों के प्रति अपने बच्चों से अधिक लाड़ जता रही थीं।
‘‘बरबाद हो गया घर बेचारे का। च-च-च!’’
‘‘पिछले साल ही मास्टर का जवान लड़का पुलिस की गोली से मरा था, शहर की हड़ताल में।’’
‘‘भगवान दुखी को और दुख देता है। ये मरे स्टोव तो जानलेवा हैं। इनको घर में रखना मौत को बुलावा देना है।’’
‘‘ हाँ बहन, तू ठीक कहती है’’, एक बड़ी-बूढ़ी ने उसकी बात का समर्थन किया। इस प्रकार स्टोव की भयंकरता की कहानी हर औरत ने अपने ढंग से सुनाई।
शाम को भी ये औरतें अपने पतियों के सामने मास्टर की पत्नी की दर्दनाक मौत के किस्से बयान कर रही थीं।
‘‘भगवान ऐसी मौत किसी को न दे। बेचारी मास्टरनी तो हर शुक्रवार का व्रत रखती थी, किसी से न लड़ना,न झगड़ना....मरा ये स्टोव तो किसी का नहीं....ऐजी, कल इसका बर्नर बदलवा देना....यह कहकर वह स्टोव में तेजी से पंप मारने लगी।

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