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लघुकथाएँ - संचयन - राजेन्द्र मोहन त्रिवेदी
सवारी

सिपाही ने चालक को टैंपू रोकने का संकेत दिया। प्रत्युत्तर में चालक बोला, ‘हवलदार जी, जगह नहीं है, सवारियाँ पूरी हैं।’’
‘‘अबे, तेरी बगल में जो इतनी जगह है, यहाँ क्या अपनी माँ को बिठाएगा? साले के चार डंडे पड़ेंगे तो मिजाज ठीक हो जाएगा।’’ अपने पुलिसिया रोआब में सिपाही ने उसे डपटा। सहमते चालक ने प्रार्थना–भरे लहजे में कहा, ‘‘हवलदार जी, आप ही लोगों का कहना है कि बगल में सवारी बैठाना कानूनी जुर्म है और अब आप ही...’’
चालक की पीठ पर डंडा जमाते हुए सिपाही दहाड़ा, ‘‘हरामजादे, तुझे मैं सवारी दिखाई देता हूँ?’’
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