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लघुकथाएँ - संचयन - राजेन्द्र मोहन त्रिवेदी
मुद्दा

एक महाविद्यालय में राजनीतिशास्त्र के विभागाध्यक्ष अपने चैंबर में बैठे कुछ नेताओं से आम चुनावों के प्रचार–मुद्दों पर विचार–विमर्श कर रहे थे कि एक विद्यार्थी आया और बोला, ‘‘सर, आपका पीरियड है।’’
विभागाध्यक्ष ने विद्यार्थी की बात पर ध्यान दिए बिना ही विचार–विमर्श को आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘‘सरकार द्वारा किए गए कार्यों की कटु आलोचना चुनाव का मुख्य मुद्दा होना चाहिए।’’
विद्यार्थी ने पुन: बीच में टोका,‘‘सर, आपका पीरियड!’’
विभागाध्यक्ष थोड़ी–सी गर्दन घुमाते और खिसियाते हुए फूटे, ‘‘बड़े बेवकूफ हो तुम। अरे, इससे अच्छा राजनीति का पीरियड और क्या होगा जाओ, तुम लोग भी जाकर सड़क पर राजनीति का कोई प्रायोगिक मुद्दा ढूँढ़ो।’’
विद्यार्थी लौट पड़ा। लौटते हुए उसने देख कि एक मुद्दा तो उसके आगे–आगे ही चल रहा है कि बूढ़े पेड़ केवल नमस्कार के योग्य होते हैं।
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