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लघुकथाएँ - संचयन - राजेन्द्र मोहन त्रिवेदी
लिफ्ट

‘‘स्कूटर रोकिए! मैं जल्दबाजी में सोच भी न सकी कि मुझे आपके साथ नहीं जाना है। आप रोकते हैं कि मैं कूद पड़ूँ?’’
‘‘हाँ...आप तो बड़े चौराहे तक जाने वाली थीं?’’
‘‘आप मानवताविहीन व्यक्ति हैं....किसी भी क्षण धोखा दे सकते हैं।’’
‘‘खबरदार! जो मेरे लिए अपशब्द निकाले। अपने मन की भड़ास अपनी माँ–बहन पर जाकर निकालना।’’
‘‘‘उस बुड्ढ़े का एक्सीडेंट हो गया था तो उसे अस्पताल तक भी न ले गए, व्यस्तता बताकर इन्कार कर दिया और मुझे लिफ्ट दे दी।’’
‘‘सुनिए, यह स्कूटर है...कोई एंबुलेंस तो नहीं, जो मैं मुर्दे ढोता फिरूँ। और आप लोगों के लिए तो....!’’
सामने चौराहे पर लाल बत्त ी देखकर मजबूरन उसे स्कूटर रोकना पड़ा। और वह फुटपाथ से होकर हाँफती–सी किसी गली की ओर मुड़ गई।
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