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लघुकथाएँ - संचयन - कस्तूरी लाल तागरा
पुरुष–मन
उनका विवाह हुए अभी कुछ ही सप्ताह बीते थे कि एक दिन पति ने पत्नी को अंतरंग क्षणों में अपनी पूर्व गर्लफ़्रेंड के बारे में चटकारे लेते हुए विस्तार से बताया।
पत्नी कुछ दिन आक्रोश से भरी रही। लंबा अबोला चला। और उसके बाद मान मनुव्वल का दौर शुरू हुआ। अन्तत: इस शर्त के साथ समझौता हो गया कि पति आईन्दा ऐसी गलती नहीं दोहराएगा। पत्नी के प्रति सदैव वफादार रहेगा।
दोनों की जिन्दगी एक बार फिर ठीक से चलने लगी थी कि एक दिन पत्नी ने यूँ ही लाड़ जताते हुए पति से कहा, ‘‘आपने मुझसे तो कभी पूछा ही नहीं कि मेरा भी कभी किसी से प्रेम–प्रसंग रहा है कि नहीं।’’
पति ने तुरंत पत्नी के मुँह पर अँगुली रख दी, ‘‘हो भी तो कभी मुझे बताना नहीं। हम मर्दों के पास तुम औरतों जितना बड़ा दिल नहीं होता।’’
पति के ऐसे बड़प्पन भरे व्यवहार से पत्नी के मन में पति के प्रति आदर बढ़ गया। लेकिन उस दिन के बाद से पति एक जासूस में तब्दील हो गया।
 
 
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