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लघुकथाएँ - संचयन - कस्तूरी लाल तागरा
बाजार
एक ग्लैडूलस, जो अभी खिला भी नहीं था, तोड़ लिया गया। जब वह बीज था,तो उसने सुना था कि इनसान कभी भगवान पर चढ़ाने के लिए, कभी उत्सवों के लिए, कभी यों ही सूँघने–मन बहलाने के लिए फूलों को तोड़ता है। वह इस बात से डरता भी नहीं था कि उसे कभी तोड़ा जाना है, लेकिन उसे यह बात समझ में नहीं आई कि वह तो अभी खिला ही नहीं है, उसे तोड़ने से इनसान को क्या लाभ? कम–से–कम मुझे खिलने तो दिया होता। दरअसल उस ग्लैडूलस को जड़ के थोड़ा ऊपर से उसकी गर्दन जैसी लम्बी डंडी सहित काटकर बहुत अच्छी–सी पैकिंग में एक पांच सितारा होटल में सप्लाई कर दिया गया था।
उसका पोर–पोर पीड़ा से विह्वल था, किंतु होटलवालों को तो इससे कुछ लेना–देना नहीं था। उन्होंने अपने उस खरीदे हुए माल को एक खूबसूरत पॉट में सजाकर रख दिया। पॉट में पानी भरे जाने से उस ग्लैडूलस को कुछ राहत अनुभव हुई।
पानी डालनेवाला आदमी उसे फरिश्तों–जैसा लगा, लेकिन उसे क्या पता था कि ऐसा करके इनसान उस पर दया नहीं कर रहा, बल्कि उसे इस घायल अवस्था में भी जबरदस्ती खिलाना चाहता है। अपने ग्राहकों के लिए। कैटी गर्दनवाला वह मर्माहत ग्लैड्लस मर जाना चाहता था, लेकिन उसे जिंदा रखने पर उतारू थे होटल के प्रबंधक। ग्लैड्लस के पास जीवन मुक्ति के लिए बस एक ही चारा था कि वह खिले, कुछ भी सहकर खिले।
 
 
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