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लघुकथाएँ - संचयन - कस्तूरी लाल तागरा
हाथी के दाँत
चिंतित पत्नी पति से बोली, ‘‘इधर देख रही हूँ कि अपना बेटा कुछ क्रांतिकारी होता जा रहा है। समता–वमता की बातें करने लगा है। अन्याय एवं भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलने लगा है। शायद किसी संगठन का सदस्य भी हो गया है।’’
पति नेता थे। बिना विचलित हुए बोले, ‘‘यह तो अच्छी बात है। यही सब बातें, तो मैं स्वयं नित्य प्रति सभाओं में बोलता हूँ। शायद बच्चे में खानदानी गुण आ रहे हैं।’’
‘‘नहीं, आपके ऐसा बोलने और उसके ऐसा करने में बड़ा फर्क है।’’ घबराई पत्नी ने प्रत्युत्तर दिया।
‘‘वो कैसे?’’
‘‘आप तो यह सब कुछ केवल दिमाग से करते हैं, किंतु हमारा बेटा दिल और दिमाग से ऐसा करता प्रतीत हो रहा है मुझे।’’
नेताजी अब पत्नी से भी ज्यादा चिंतित हो गए।
 
 
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