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लघुकथाएँ - संचयन - कुमार नरेन्द्र
बिरादरी का दुख

मुद्दत से चल रहे किराएदार बंसीराम पर दायर मुकदमा जीतने के बाद आज पंडित ज्योति साद निरे खुश थे।
सुबह से ही बधाई देने वालों को ताँता लगा हुआ था और पंडितजी हाथ जोड़े सबका स्वागत कर रहे थे। साथ–ही–साथ सभी को इस बार दीपावली पर अपने यहाँ आमंत्रित कर रहे थे।
दोपहर हुई। आसापास के सभी बुढ़ऊ यार–दोस्त खुशी–खुशी अपने–अपने घर लौट गए और पंडितजी अपने दूर के दोस्तों को पत्र लिखने बैठ गए।
....कुछ दिनों बाद उनके दोस्तों के जवाब आने शुरू हो गए। एक विधुर दोस्त ने लिखा, जो कि हर वर्ष उनके यहाँ ही दीपावली–पर्व मनाता रहा है–
प्रिय पंडितजी,
...अस्वस्थ होने के कारण संभवत: मैं इस बार तुम्हारे यहाँ दीपावली पर न आ पाऊँगा.....।
तुम्हारा
रामसहाय
पंडितजी का यह दोस्त परदेश में किराएदार था।

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