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लघुकथाएँ - संचयन - मधुकान्त
लोकतंत्र

घोड़ागाड़ी से उतरते ही उन्होंने सुनहरा चश्मा उतार दिया और कोचवान की सहायता से फल बाँटते हुए वे बस्ती में प्रवेश किए जा रहे थे।
‘‘जीतेगा भई जीतेगा....’’
जीतेगा भई जीतेगा....वाक्य को अधूरा छोड़कर अपनी चमड़ी चढ़ी हड्डियों के साथ हाथ बाँधे वह सेठ के सामने आ गया....सेठजी आपका नाम के है?

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