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लघुकथाएँ - संचयन - मधुकान्त
सब के सब

लंबी–तगड़ी मूँछों ने आज ही ज्वाइन किया था। हेड–आफिस से टेलीफोन आया–‘‘बस्ती के सभी गुंडे–बदमाशों को बुलाकर सख्त कर दो....कहीं कोई गड़बड़ नहीं होनी चाहिए।’’
मुस्तैदी से पालन करने के लिए उन्होंने तुरंत चौकीदार को बुलाया ओर बस्ती के सब गुंडे–बदमाशों को एकत्रित करने के लिए कहा।
‘‘पर साहब, अब तो इस बस्ती में एक भी गुंडा–बदमाश नहीं है!’’ चौकीदार ने बताया।
‘‘क्या कहाँ चले गए...?’’ विश्वास न आया था उन्हें।
‘‘साहब, पंचायत के चुनाव हुए थे ना,सब के सब जीत गए।’’ कहते हुए उसकी आँखें चारों ओर से चौकन्नी थीं।

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