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लघुकथाएँ - संचयन - अमरीक सिंह दीप
उसकी बदौलत

रो–रोकर बदहवास हो चुका अधेड़–आदमी....हेड मोहर्रिर के पैरों पर सिर रखकर गिड़गिड़ा रहा था, ‘‘मेरी बिटिया....मेरी मुनिया को कालू साँड उठा ले गया है। मुझ पर दया कीजिए। मेरी रपट लिख लीजिए। मेरी बिटिया वापस दिलवा दीजिए।’’
हेड मोहर्रिर को सुख मिल रहा था। आनंद आ रहा था। कदमों पर बिछा अधेड़ आदमी कासिर उसेक पैरों के रक्त में सुरूर भर रहा था। रक्त में घुलता सुरूर सिर में आकर गुरूर में बदल गया था। अधेड़ आदमी रोए जा रहा था और हेड मोहर्रिर इस ब्रह्य–सुख को घूँट–घूँट गटकते हुए अपनीखि़जाब लगी काली मूँछों के बीच भीना–भीना मुसकरा रहा था।
‘‘हुजूर सरकार, आप हँस रहे हैं!.....मेरी फरियाद क्यों नहीं सुन रहे? माई–बाप दया कीजिए। मेरी रपट लिख लीजिए। मेरी बिटिया वापस दिलवा दीजिए।’’
हेड मोहर्रिर का ब्रह्य–सुख खंडित हो गया। उसकी आँखों में गुस्सा उतर आया, ‘‘हँसूँ न तो क्या रोऊँ?....क्यों रोऊँ? रोने के लिए थोड़े ही पुलिस बनी है। वह तो हचक कर खाने, जमकर मौज उड़ाने और डटकर नोट चीरने के लिए बनी है।’’
नोट चीरने की बात सुनकर अधेड़ आदमी को बहुत देर बाद यह इलहाम हुआ कि उससे कहाँ गलती हो रही थी। उसने अपने गंदे पायजामें के नेफे से एक तुड़ा–मुड़ा बीस रुपए का नोट निकाला और हेड मोहर्रिर के क़दमों में रख दिया।
‘‘बीस रुपल्ली?’’......इसे अपनी उसमें डाल ले बुजरी के। जानता है, बीस के नोट पर मेरी घरवाली छुलछुल मूतती है।
‘‘सरकार, और तो कुछ नहीं हमरे लगे। कल से रिक्शा भी नाई निकाला। माई–बाप ये तो रख लीजिए। बाकी जितना आप कहेंगे, रिक्शा निकालने पे आपको दई देंगे....बस अब दया करके हमरी रपट लिख लीजिए। मेरी बिटिया....मोरे करेजे का टुकड़ा कालू साँड से मोये वापिस दिला दीजिए।’’ मेरी बिटिया....मोरे करेजे का टुकड़ा कालू साँड से मोये वापिस दिला दीजिए।’’ आँसुओं से विगलित हो विनती करता अधेड़ आदमी का शरीर हेड मोहर्रिर के कदमों में बिछ गया था।
, हेड मोहर्रिर की आँखों का गुस्सा विद्रूप में बदल गया था, ‘‘कितना दे देगा बे तू रिक्शा चलाकर?सौ...दो सौ....?” जानता है कालू साँड हर महीने कितना देता है इस थाने का ठाठ बाट...दरोगा जी की बुलेट...एस.ओ. की गाड़ी....बंगला सब उसकी बदौलत है। उसकी बदौलत मेरे बच्चे अंग्रेजी स्कूल में पढ़ रहे हैं। एस.ओ.साहब का लड़का इंजीनियरिंग कर रहा हैं। उसकी ही बदौलत दरोगा जी अपनी बिटिया के ब्याह के दहेज से निश्चिन्त हैं। हर पुलिस वाले के सुनहरे भविष्य का सूरज है कालू साँड । उसकी रिपोर्ट में तो क्या,देश की सरकार भी नहीं लिख सकती। चल भाग जा यहाँ से साले.....’’

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