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लघुकथाएँ - संचयन - सुदर्शन रत्नाकर
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शुद्ध जात
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माँजी मेरे पास रहने के लिए आ रही थीं ।उनको नहलाना- धुलाना,घुमाना कपड़े
लत्ते,खाना सब काम मुझे ही करने होंगे ।थोड़ा कठिन लगा ।इसलिए मैंने मेड
ढूँढ़नी शुरू कर दी ।पर मिली ही नहीं । तभी पता चला गली के सफ़ाई कर्मचारी
की पन्द्रह - सोलह वर्ष की लड़की है ।उससे बात की तो वह उसे काम पर भेजने
के लिए तैयार हो गया ।मैंने उसे समझा दिया कि वह किसी को बताएगा नहीं कि
उसकी बेटी यहाँ काम करती है ।माँजी को तो बिलकुल ही पता नहीं चलना चाहिए ।
राधा माँजी के सारे काम पूरे
मन से करती ।उन्हीं के कमरे में सोती थी ।माँजी ख़ुश थीं और मैं निश्चिंत ।
कई
महीने निकल गए ।एक दिन मैं घर पर नहीं थी ।उस दिन राधा का भाई घर पर आ गया
।कोई रिश्तेदार आए थे और उसकी माँ ने उसे घर बुलाया था। उसके भाई से माँजी
को पता चल गया कि राधा कौन जात की है ।मैं माँजी के सामने जाने से डर रही
थी कि उनकी क्रोधाग्नि का सामना कैसे कर पाऊँगी ।वह ठहरी जात- पात,छुआ-छूत
में विश्वास रखने तथा नित्य नियम से रहने वाली महिला ।
उन्होंने मुझे बुलाया
।मैं डरते-डरते उनके पास गई ।उन्होंने पूछा,"बहू ,तुम जानती थी कि राधा
कौन जात है ।"
" जी माँजी" मैंने संक्षिप्त सा उत्तर दिया"
"कोनो बात नहीं बहू,जब अपने सेवा न कर सकें तो परायों की कौन जात,जो सेवा करे वही शुद्ध जात ।“
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