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लघुकथाएँ - संचयन - सुदर्शन रत्नाकर
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धूप
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सर्दी का मौसम,ऊपर से शाम से ही वर्षा आरम्भ हो गई थी ।वे बच्चों के साथ
अपनी झोंपड़ी में आ गए थे ।गर्म कपड़े नाममात्र के थे ।झोंपड़ी में पानी
रिस रहा था। बैठने की जगह भी नहीं थी ।किसी तरह कोने में पत्नी ने बच्चों
पर सूखे कपड़े डालकर सुला दिया था ।स्वयं उकड़ूँ होकर बैठ गए । ठंडी हवा
का झोंका आता तो दरवाज़े पर लगा टाट का टुकड़ा हिलता और पानी की बौछारें
उन्हें भिगो जातीं ।जैसे तैसे उन्होंने वह कठिन रात जागते जागते काट दी
।बच्चे भी कुनमुनाते रहे ।
सुबह होते ही वर्षा थम गई ।काले
बादल छँट गए थे और सूर्य निकल आया था ।वे सब बाहर आ गए ।बच्चे खेलने लग गए
थे और वे काम पर जाने की तैयारी करने लगे ।
पिछली रात को वे सब भूल गए थे ।झोंपड़ी में पानी अभी भी रिस रहा था । |
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