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लघुकथाएँ - संचयन - पवित्रा अग्रवाल





शुभ-अशुभ  


"माँ ये इतनी सारी आन्टी क्यों आयी थीं...इनके घर मे शादी है क्या ?'-पाँच.छह वर्षीय  पुत्र ने पूछा
   "नही बेटा शादी नही, इनके दादा जी की तेरहवीं है,उसके लिए बुलाने आई थीं।'
 "तेरहवीं क्या होता है माँ ?'
     "जब कोई मर जाता है तो उसके मरने के तेरहवें दिन घर मे पूजा-पाठ होता है..पंडितों को दान -दक्षिणा दी जाती है। उन्हें और जाति-बिरादरी वालो को खाना  खिलाया जाता है।इसी को तेरहवीं कहते हैं।'
   बच्चे ने उत्साह से पूछा-"इसका मतलब जब कोई मर जाता है तो दावत होती है ? फिर तो उस दिन लड्डू-पूड़ी-कचौड़ी भी बनते होंगे ?..अपने घर ऐसी दावत कब होगी माँ?'
    माँ ने मुह बिचका कर खाट पर बीमार पड़ी सास को देख कर कहा -"ये मरेगी तब।'
 बच्चा चहका-"जब दादी मरेगी तो अपने यहाँ भी दावत होगी ?'
   "हाँ'
  बच्चे ने बीमार पिता को देख कर पूछा -"पापा मरेंगे तब भी दावत होगी?'
   तड़ाक से एक चाँटा बच्चे के गाल पर पड़ा-"करमजले, अशुभ बातें मुह से निकालता है।'
     बच्चा रोने लगा था।वह नही समझ पाया कि उसकी गल्ती क्या है...दादी के मरने की बात शुभ और पिता के मरने की बात अशुभ कैसे हो गयी।

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