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लघुकथाएँ - संचयन - पवित्रा अग्रवाल





स्टेटस   



मिस्टर वाल्मीकि घर पहुँचे तो पत्नी  मुँह लटकाये हुए बर्तन  माँज रही थी।
 " आज कामवाली नहीं आई ?'
 " अब आएगी भी नहीं।'
 "अब क्या हो गया । पहले तो  कामवाली हमारी जाति पता लगने पर काम छोड़कर भाग जाती थीं।...लेकिन ये नई कामवाली तो अपनी ही जाति की है। ये क्यों भाग गई ?'
   "हमारी जाति की है तो क्या हमारे सिर पर चढ़ कर बैठेगी ?.. हमारे स्टेटस की हो जाएगी ?...अब  तक तो  कुर्सियों पर   बैठती थी।...मुझे अच्छा तो नहीं लगता था  किंतु  यही सोच कर चुप   बैठ जाती थी कि बड़ी मुश्किल से तो मिली है कहीं ये भी न भाग जाए।....
  आज टीवी पर फिल्म आ रही थी। उसे देखने के लिए वह सोफे पर बैठ गई। पिंकी ने टोक दिया कि सोफे पर नहीं कार्पेट पर बैठ जाओ।'....
 "फिर ?'
 "फिर क्या, बस तुनक कर खड़ी हो गई और बोली, "अब तक जब ऊँची जाति के लोग हमें   
अपने   से छोटा समझते थे तो बहुत गुस्सा आता था। लेकिन पिंकी हम और तुम दोनों एक जाति के हैं फिर तुम हमसे  अछूतों -सा व्यवहार क्यों कर रही हो ? तुम चार अक्षर पढ़ गए तो हम से ऊँची जाति के तो नहीं  हो गये ?...नहीं करना तुम्हारा काम।' कहकर पैर पटकती हुई बाहर चली गई थी ।'

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