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लघुकथाएँ - संचयन - पवित्रा अग्रवाल





सजा  



पत्नी ने कहा --"तुम भी अजीब आदमी हो.. तुमने जज साहब पर  भी सौ रुपये का फाइन ठोक दिया ।''
    "  मुझे क्या पता था कि कार ड्राइवर के बाजू वाली सीट पर बैठा व्यक्ति यहाँ का जज है । उन्होंने सीट बैल्ट नहीं लगा रखी थी इसलिए मैंने पर्ची काट दी...वैसे पता भी होता तो मैं ने कोई गलत काम तो किया नहीं है.. अपनी ड्यूटी  ही निभाई है ''
     पास खड़े पिता ने कहा--"नहीं बेटा तुमने कोई गलती नहीं की है  ये रूल्स भी उन्हीं लोगों के बनाए हुए हैं , ड्राइवर ने बैल्ट बाँध रखी थी साथ वाले ने नहीं ,तुमने सौ रुपए जुर्माना करके कोई गल्ती नहीं की,तुम्हें तो ईनाम मिलना चाहिए ।''
     वह व्यंग्य से मुस्कराया और बोला--"पापा आप ईनाम की बात कर रहे हैं ,यहाँ तो नौकरी खतरे में पड़ गई है ।''
 "वो कैसे ?''
 "नौकरी बचानी है तो माफी माँगनी पड़ेगी ।''

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