गतिविधियाँ
 

   
     
 
  सम्पर्क  

सुकेश साहनी
sahnisukesh@gmail.com
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
rdkamboj@gmail.com

 
 

 
लघुकथाएँ - संचयन -     माधव नागदा





  अग्निपरीक्षा     


 
सीता देवी ने अपने सीधे हाथ की उँगलियों के पोरों पर अँगूठा चलाकर हिसाब लगाया। उसका पति रामलाल तीन दिन और बारह महीने बाहरवास काटकर आज घर लौटा है। गये बरस धनतेरस को सेठ धनराज रावण बनकर आया था और उसके भोले-भाले पति को धन का लालच देकर अपने साथ ले गया। तब से बस टेलिफोन तेरा आसरा। कभी मुम्बई से ट्रन-ट्रन तो कभी मस्कट, कुवैत से।
      वह जब-जब भी पूछती, “कब आओगे?” उधर से हर बार बुझा-बुझा -सा जवाब आता, “जब सेठ छोड़ेगा।” सीता मायूस होकर टी.वी. में मन बहलाने की कोशिश करती। मगर इससे दिल और ज्यादा उदास हो जाता।
  आज उदासियों के जंगल में सितारों की बारात आयी है। सीता देवी बहुत खुश है। घर वाले भी। रामलाल तो सबसे अधिक।
  सीता ने महसूस किया कि खुशी के नर्म गदले में कोई सुई सी चुभ रही है। ज्यों-ज्यों साँझ ढलने लगी त्यों-त्यों यह चुभन तेज से  और तेज होती गयी। अन्ततः उसने मन ही मन एक फैसला किया।
      यार-दोस्तों से छुट्टी पाकर जब रामलाल सोने पहुँचा तो सीता ने उसे बाहर ही रोककर भीतर से सिटकनी चढ़ा दी। बोली, “पहले तुम्हें अग्निपरीक्षा देनी होगी।”
  दरवाजे के उस पार खड़ा रामलाल चक्करघिन्नी खा गया। एकाएक सीतली पर कौनसा भूत सवार हो बैठा! अग्निपरीक्षा देना तो औरतों का काम है। आज यह उल्टी गंगा कैसे?
  “मजाक छोड़ो। मुझे अंदर आने दो।”
   मगर सीता तो अंगद के पांव की तरह अड़ गई।
  “ तुम कहो तो मैं मंदिर जाकर गाँव वालों के सामने गंगाजलि उठा लूँ। सच कहता हूँ- मन, वचन, कर्म से मैंने तुम्हें ही चाहा है।”
  “इसमें तन कहाँ है? मैं तो तुम्हारे तन की अग्निपरीक्षा लूँगी।”

   “तो क्या करूँ? जल मरूँ? आग के दरिया में कूद जाऊँ?” रामलाल झल्लाया।
   “जलने की कौन कहता है जी। तुम तो कल शहर जाकर एड्स की जाँच करवा लो। ‘रिपोट’ आने तक तुम्हारा बिस्तर वो वहां आँगन में नीम के नीचे।”
  दूसरे दिन रामलाल थके कदमों से पहली बस में बैठकर अग्निपरीक्षा के लिए शहर रवाना हो गया।

                                                                          -0-



 
 
Developed & Designed :- HANS INDIA
Best view in Internet explorer V.5 and above