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लघुकथाएँ - संचयन -     माधव नागदा





  परिचय    


 
 जब से उसका स्थानान्तरण आदेश आया है सब मन ही मन खूब पुलकित हैं। खूबीचन्द चपरासी से लेकर बड़े बाबू खेमराज तक सब। कैसी होगी वह? युवा अधेड़ या वृद्ध? फैशनेबल या सीधी-सादी? दिलफेंक या गुमसुम? गोरी या काली? खूबसूरत या कमसूरत? किसे पसन्द करेगी? वर्मा को या शर्मा को? कौन बनेगा उसका खासमखास? बड़ा बाबू या बॉस? तरह-तरह की अटकलें। तरह-तरह के अनुमान। लोग बार-बार स्थानान्तरण आदेश देखते गोया उसकी उम्र लिखी हो या सूरत दिखती हो या सीरत का अन्दाजा होता हो। आदेश को सूँघते और मुस्कराते मानो कोई अनाम खुशबू उनके नथुनों में बस गई हो।
       आखिर वह दिन भी आ गया जब उसने ज्वाइन किया। सभी ने उसमें अपनी-अपनी कल्पना का कोई न कोई रंग खिलते पाया। वह रूपवान नहीं तो कुरूप भी नहीं थी। कमसिन नहीं तो अधेड़ भी नहीं थी। हँसोड़ तो नहीं किन्तु विनोदी स्वभाव की थी। फैशनेबल होते हुए भी फूहड़ नहीं थी। रंग गेंहुँआँ। आँखों में सबके प्रति एक आत्मीय भाव। सभी उसका परिचय पाने को उतावले हो उठे। सो एक परिचय पार्टी ही रख दी गई। औपचारिक परिचय के पश्चात् लोगों ने उससे तरह-तरह के सवाल पूछना शुरू किया। कितने साल की सर्विस हो गई है? इसके पहले कहाँ-कहाँ रही? शिक्षा कहाँ तक? विषय क्या-क्या? रुचियाँ,पसन्द, नापसन्द वगैरह-वगैरह। एक होड़ -सी। उसने सबको सबका यथायोग्य शालीनता और विनम्रता से जवाब दिया। फिर भी लोगों की उत्सुकता निःशेष नहीं हो पा रही थी। वर्मा ने पूछा, “आपके हस्बेन्ड का क्या नाम है?”
   “मिस्टर कमल।” उसने बेरुखाई से उत्तर दिया फिर किसी और बात में लग गई।
   “आपके हस्बेन्ड क्या करते हैं?”
    उसने कोई ध्यान नहीं दिया। शायद जानबूझकर।
    “आपके हस्बेन्ड कहाँ हैं आजकल?”
     वह उखड़ गई।
     “क्या मतलब है? मेरे हस्बेन्ड से क्या लेना है आपको?” उसकी आवाज रुँध -सी गई। “क्या मैंने आप लोगों की वाइफ के बारे में कोई सवाल पूछा है....?” आगे वह कुछ नहीं बोल सकी और उठकर तीर की तरह बाहर निकल गई।

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