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लघुकथाएँ - संचयन - पारस दासोत





पेट


मज़दूरी देते समय मैंने उसके तार-तार कपड़ों को देख कहा-“ तू कुछ पैसा जोड़ …पेट काटकर जोड़!”
“सेठ साऽऽब ! …पेट काटकर ? …कहाँ है पेट? अपनी फटी बनियान ऊँची कर उस्ने उत्तर दिया।
इसके पहले कि मैं प्रत्युत्तर में कुछ कहता,मैंने न जाने क्यों , कोट- कमीज़ को ऊँचा कर अपना पेट देखा । अभी मैं अपनी सुन्दर तोंद को देख ही रहा था कि वह अचम्भित स्वर में बोला :
“ऐसा ऽऽ …होता है पेट!!!”


 
 
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