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लघुकथाएँ - संचयन - पारस दासोत





मदारी का खेल


खूँटी–बँधे नेवले ने पिटारे में पड़े साँप से पूछा,”दोस्त, अब तो हम साथी भी बन गए …हम क्यों लड़ते हैं ? कहीं…इसलिए तो नहीं कि तुम साँप हो और मैं …नेवला?”
अब…शायद साँप अपने भाई नेवले से कुछ कहता, मदारी ने डुगडुगी बजाई और देखते ही देखते दोनों साथी लड़ने के लिए तैयार हो गए ।


 
 
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